भारत का एक ऐसा जज जिसे दी गई फांसी की सजा, जानिए कारण
अपराधी को सजा
जज के द्वारा किसी अपराधी को सजा दिए जाने की बातें तो आपने बहुत सुनी होगी। लेकिन क्या आपने कभी ऐसा सुना है कि किसी जज को ही फांसी पर लटकाया गया हो?
जज को फांसी की सजा
साल 1976 में भारत के एक जज को फांसी की सजा दी गई थी। जज को फांसी की सजा दिए जाने की पीछे की वजह जानकर आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे।
उपेंद्र नाथ राजखोवा
दरअसल, हम जिस जज के बारे में बात कर रहे हैं, उनका नाम था उपेंद्र नाथ राजखोवा । उपेंद्र असम के दुबरी जिले में जिला एवं सत्र न्यायाधीश के पद पर तैनात थे।
पत्नी और बेटियां गायब
उपेंद्र नाथ राजखोवा फरवरी 1970 में सेवानिवृत हो गए थे, लेकिन सरकारी बंगला खाली नहीं किया था। इसी दौरान उनकी पत्नी और तीन बेटियां अचानक गायब हो गईं।
उपेंद्र नाथ राजखोवा से जब भी परिवार के बारे में पूछा जाता, तो वो कुछ बहाना बना देते थे। अप्रैल 1970 में उपेंद्र ने सरकारी बंगले को खाली कर दिया और उनकी जगह एक दूसरे जज आ गए।
सरकारी बंगले को खाली करने के बाद उपेंद्र नाथ राजखोवा भी गायब हो गए। लेकिन ' उपेंद्र के साले ने पता लगा लिया कि वे सिलीगुड़ी के एक होटल में ठहरे हुए हैं।
उपेंद्र नाथ राजखोवा को होटल से गिरफ्तार कर उनसे परिवार वालों के बारे में पुछा गया। इसपर उपेंद्र ने कई तरह के बहाने बनाए और होटल में ही आत्महत्या करने की कोशिश की।
हालांकि, बाद में उपेंद्र नाथ राजखोवा ने कबूल किया कि उन्होंने अपनी पत्नी और तीनों बेटियों की हत्या कर लाश को सरकारी बंगले के जमीन में गाड़ दिया है।
उपेंद्र नाथ राजखोवा पर पत्नी और बेटियों की हत्या का केस दर्ज कर लिया गया। लगभग 1 साल के बाद निचली अदालत ने उपेंद्र नाथ राजखोवा को फांसी की सजा सुनाई।
उपेंद्र नाथ राजखोवा ने अपनी फांसी की सजा पर दया याचिका के लिए राष्ट्रपति तक गुहार लगाई, लेकिन उनका अपील ठुकरा दिया गया।
14 फरवरी, 1976 को जोरहट जेल में पूर्व जज उपेंद्र नाथ राजखोवा को फांसी की सजा दी गई। बता दें कि उपेंद्र नाथ राजखोवा भारत का इकलौते ऐसे जज हैं, जिन्हें फांसी पर लटकाया गया।