बिहार के मखाना को जल्द मिलेगा जीआई टैग । मखाना को जल्द ही ग्लोबल पहचान मिलने वाली है। केंद्र सरकार के कंसल्टेटिंग समूह ने पटना में इसकी बैठक कर सारी बाधाएं दूर कर दी। बैठक में आवेदक के दावों पर सत्यता की मुहर लग गई। साथ ही इसकी विशेषताओं और उत्पाद के स्रोत से भी केंद्र के अधिकारी अवगत हो गये। अब जल्द ही इस उत्पाद को ‘बिहार का मखाना’ के रूप में जीआई टैग मिल जाएगा। उसके बाद इसकी निर्यात भी तेज होगी।

बिहार के मखाना को जल्द मिलेगा जीआई टैग

दिल्ली से आये कंसल्टेटिंग समूह के अधिकारियों ने जीआई टैग के लिए आवेदन करने वाले मिथिलांचल मखाना उत्पादक समूह को भी बुलाया गया था। आवेदक ने इसके उत्पादन के इतिहास की जानकारी देकर बताया कि यह बिहार का ही उत्पाद है। इसके इतिहास से जुड़े प्रमाण भी प्रस्तुत किये गये। साथ ही इसकी विलक्षणता से भी अधिकारियों को अवगत कराया। अधिकारी पूरी तरह संतुष्ट होकर गये।

बिहार के मखाना को जल्द मिलेगा जीआई टैग

मखाना को जीआई टैग मिलने के बाद विश्व में कोई कहीं मार्केटिंग करेगा तो वह बिहार के मखाना के नाम से जाना जाएगा दूसरे किसी भी देश और राज्य का दावा इस कृषि उत्पाद पर नहीं हो सकता। इसी के साथ राज्य के मखाना उत्पादकों को नया बाजार मिल जाएगा और उनकी आमदनी बढ़ेगी। खेती भी बढ़ेगी।

जीआई टैग राज्य का पांचवा कृषि उत्पाद होगा

बिहार के मखाना को जल्द मिलेगा जीआई टैग

मखाना को यदि जीआई टैग मिल जाता है तो यह राज्य का पांचवा कृषि उत्पाद होगा जो इस श्रेणी में आएगा। इसके पहले कतरनी चावल, जर्दालू आम, शाही लीची और मगही पान को जीआई टैग मिल चुका है। इसके लिए तीन साल के अथक प्रयास के बाद कृषि सचिव डॉ. एन सरवण कुमार की पहल पर किसानों की संस्था का निबंधन हुआ था। बाद में बिहार कृषि विश्वविद्यालय ने इसकी प्रक्रिया पूरी की।

कोरोना काल में मखाना की मांग बढ़ी

ऊवश्व के बाजार में कोरोना काल में मखाना की मांग बढ़ गई। वैज्ञानिकों की सलाह के बाद लोग इसकी विशेषताओं से अवगत हुए। टैग मिलने के बाद बिहार का मखाना विश्व के लोगों को असानी से उपलब्ध होगा। इस सूखे मेवे में हर वह जरूरी विटामिन है जो किसी व्यक्ति को कोरोना से लड़ने की ताकत देता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इम्युनिटी बढ़ाने में भी यह सहायक है। इसके साथ इसमें दिल के मरीजों को राहत देने वाले भी तत्व होते हैं।

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राज्य में मखाना का उत्पादन लगभग छह हजार टन होता है। यह विश्व में होने वाले उत्पादन का 85 प्रतिशत है। इसके अलावा शेष 15 प्रतिशत में जापान, जर्मनी, कनाडा, बांग्लादेश और चीन का हिस्सा है। विदेशों में जो भी उत्पादन होता है उसका बड़ा भाग चीन में होता है। लेकिन वहां इसका उपयोग केवल दवा बनाने के लिए होता है।

By Biharkhabre Team

मेरा नाम शाईना है। मैं बिहार के भागलपुर कि रहने बाली हूं। मैंने भागलपुर से MBA की पढ़ाई कंप्लीट की हूं। मैं Reliance में कुछ समय काम करने के बाद मैंने अपना खुद का एक ब्लॉग बनाया। जिसका नाम बिहार खबरें हैं, और इस पर मैंने देश-दुनिया से जुड़े अलग-अलग विषय में लिखना शुरू किया। मैं प्रतिदिन देश दुनिया से जुड़े अलग-अलग जानकारी अपने Blog पर Publish करती हूं। मुझे देश दुनिया के बारे में नई नई जानकारी लिखना पसंद है।

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